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क़लम-ए-अम्वाज kunu

Drama Inspirational

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क़लम-ए-अम्वाज kunu

Drama Inspirational

हाँ कामिल कवि मैं

हाँ कामिल कवि मैं

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लिखता हूँ एक राज मैं

करके खुद को रात मैं

आम सा आवरण ये

सम्पूर्ण अनुराग बहाता

अधूरा एक छंद मैं

नहीं जरूरत किसी चराग का

काली लपटों में देख पाता सब साफ साफ मैं

अँधियारे से मिलती उम्मीद मुझे

बिन दर्द के कहां कटता एक पल भी मेरे

ऋतुओं से खासा संबंध मेरा

गर्मी ,जाड़ा ,मानसून सब दोस्त मेरे

मौन हो भरता हुंकार मैं

शब्दों से सिंहासन हिला

रचता एक क्रांति मैं

कैसे हूँ मैं तुम सा जो बता रहे

बदन कि सुंदरता देख

सत्य छुपा रहे

मौत तक को छू के आया हूँ

वो संघर्ष वो ज़िद मैं

पढ़ लो कर लो विवाद जितने

एक पहर बाद तुम मिट जाओगे ऐसे

जैसे कभी अस्तित्व ना रहा तुम्हारा

मगर रहूंगा

सृष्टि के अंत तक जीवित मैं

समन अपनी कविता में

सज लोगों के तालु पे मैं

कहो अब कितना विचित्र

और अलग हूँ तुम सब से मैं


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