बेटी
बेटी
जन्म से ही बेचारी
हो जाती है जो
आँखों में खटकती काँटा
बन जाती है जो
हाँ एक बेटी है वो।
जवानी में कदम रखते ही
सब के नज़रों में आ जाती है
हर वक्त सहम कर
बिताती है जो
हाँ एक बेटी है वो।
धन दौलत देकर
ब्याह दी जाती है जो
घर के हर कोने को
सूना कर जाती है जो
हाँ एक बेटी है वो।
एक अनजाने से घर को
अपना बनाती है जो
खुद को भूलाकर सबकी
सेवा में लग जाती है जो
हाँ एक बेटी है वो।
