STORYMIRROR

Shobhit Trivedi

Drama

4  

Shobhit Trivedi

Drama

रिश्तों का सच

रिश्तों का सच

1 min
386

ज़माने को मुंह मोड़ते देखा है,

आंखों को आंखों के सामने झुकते देखा है,

आंखो से नींद को छुपते देखा है,

इश्क को अश्क बन कर सुबकते देखा है,


जुबां को चुप हो कर सब सुनते देखा है,

हवा मैं किसी की कमी को बस्ते देखा है,

किसी के इज़हार को रास्ते रास्ते देखा है,

मुसाफिर को राह भटकते देखा है,


चाहत को किसी बाहों में डूबते देखा है,

किसी की यादों मै वक़्त को सूखते देखा है,

पिरोए हुए शब्दों को बिखरते देखा है,


(के अगर बात सच्चे और

झूठे प्यार की हो तो साहब)

झूठे को चूमते और सच्चे को

नशे में झूमते देखा है,


अपने के लिए किसी को संवरते

तो किसी को बिखरते देखा है,

और मुहल्ले के सामने हाथ

पकड़ कर छोड़ते और

पल भर में रिश्ते को तोड़ते देखा है,


यहां बात ज़माने की नहीं हैं जी,

के यहां बात ज़माने की नहीं है जी,

मुहल्ले के सामने हाथ पकड़ कर छोड़ते

और पल भर में रिश्ते को तोड़ते देखा है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama