STORYMIRROR

Shobhit Trivedi

Abstract

4  

Shobhit Trivedi

Abstract

तेरे ही संग

तेरे ही संग

1 min
395

तुम्हारी सांसों से चंहरा समझने लगा,

बाहों से लफ्जों को कसने लगा,

पढ़ना बहुत है बातों को उनकी,

पर ये समय ना रुका

जब पास उनके आने लगा।


चाहत का सिलसिला ही

कुछ ऐसा था की उनसे मिले तो

ना समय दिखा ना लोग,

कितने हंगामे हुए, कितने दिए झोंक,


माना की गलती हुई

के इश्क हुआ तुमसे,

पर मतलब ये नहीं के

हम ले अपने आप को रोक,


आखिर किसी के सोचने

से होता क्या है,

होना वहीं है जो उसे

भगवान करना होता है,


या तो जीयेंगे मरेंगे,

मगर उनके साथ ही रहेंगे,

उनकी सांसों सुनेंगे,

आंखों को पढ़ेंगे,

पर उनके साथ ही इबादत करेगे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract