सुहाग नहीं उजड़ा होता
सुहाग नहीं उजड़ा होता
नम आँखे उनकी कहती है
सुहाग नहीं उजड़ा होता
जो होते हात खुले सेना के
भारी मेरा पगड़ा होता
होती नियत साफ़ तुम्हारी
साजन मेरा जिंदा होता
सुहाग नहीं उजड़ा होता।
बोल दिया होता साजन को
दुश्मन घर घुस कर मारों
उनको प्यारा वतन था अपना
तुम ही गलत हो गद्दारों।
थोड़ी निति बदल जो लेते
साजन मेरा जिंदा होता
सुहाग नहीं उजड़ा होता
यहां तो सैनिक देश के खातिर
कफ़न बांधकर लड़ते है
तुम को बस प्यारी सियासत
खुर्ची खातिर झगड़ते हैं
ख्याल अगर थोड़ा रख लेते
देश को जो अपना कह लेते
साजन मेरा जिंदा होता
मेरा सुहाग नहीं उजड़ा होता।