SHASHIKANT SHANDILE

Abstract

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SHASHIKANT SHANDILE

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लिखता हूँ मगर

लिखता हूँ मगर

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लिखता हूँ मगर याद नहीं करता,

अल्फाजों से उन्माद नहीं करता !


बर्बादी जहन में न कभी आई,

मै खुद को भी आबाद नही करता !


जाहिर है मुक़म्मल न सही कुछ भी,

चाहत दिल की आजाद नही करता !


लिख तो लूँ मिरा एक सफरनामा,

कुछ है इल्म अपवाद नही करता !


कब 'एकांत' ने जीत मनाई है,

गम के शेर इरशाद नही करता !


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