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SHASHIKANT SHANDILE

Abstract Tragedy Crime

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SHASHIKANT SHANDILE

Abstract Tragedy Crime

काम भड़काना नहीं एकांत का ....

काम भड़काना नहीं एकांत का ....

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हम वतन है गर सभी तो बात क्या,

धर्म किसका क्या बताना जात क्या!


हर दफा हमने लगाया है गले,

खेलने को है मिले जज्बात क्या!


सर कलम करने लगे जब भी लगा,

गर्दनों की बट रही खैरात क्या!


साजिशों में बीत रही है जिंदगी,

दुश्मनों ने है किया तैनात क्या!


बम धमाका ही सिखाया है गया,

गोद में भी पढ़ रहा नवजात क्या,


बढ़ रही है नफ़रतों की सरहदें,

हम फकत करते रहे बर्दाश्त क्या!


जो उतर आए कभी मैदान में,

टिक सके ऐसी तिरी औकात क्या!


चल पड़े गर्दन उड़ाने कौन है,

है किसी के कौम का ये हाथ क्या!


काम भड़काना नहीं एकांत का,

है किया मजबूर फिर हालात क्या!



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