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BinayKumar Shukla

Drama

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BinayKumar Shukla

Drama

गंजेपन का दुख

गंजेपन का दुख

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कल शाम को बैठकखाने में,

चिंतन में मन फिरा रहा था

अपने गंजे सिर पर

बालों की तलाश में

अंगुलियाँ फिरा रहा था कहते हैं


एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा

बेमौसम की बरसात की तरह

सिर से बालों के चमन

उजड़ते जा रहे थे

वैसे ही बालों में

चाँदनी सी सफ़ेद परत आ रहे थे


मुझे अपने चमकते चाँद पर

जितना रश्क आ रहा था

उतना ही सफ़ेद बालों को देख

आँखों में, तूफाने अश्क आ रहा था

ये तो बहुत नाइंसाफी है


चलो ठीक है तू मेरे

सिर के बालों को उड़ा रहा है

पर क्यों बची हुई फसल में

सफेदी भरता जा रहा है

गर लेना ही है तो

इन सफ़ेद बालों को ले जाता


इससे ढलते उम्र को

प्रकट होने से कुछ तो बचा पाता

कहता गाँजा हूँ तो क्या हुआ

अभी भी जवां हूँ


यकीन ना हो तो

इन काले बालों से

मेरी उम्र का अंदाजा लगाओ।


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