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Dheerja Sharma

Drama

3.8  

Dheerja Sharma

Drama

कुछ भी तो नहीं

कुछ भी तो नहीं

1 min
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बचपन में जब बोलता था

मुंडेर पर कौआ,

माँ चहकती थी

"आज कोई खाने पर साथ होगा"।

मां का कहा सच होता था

कोई न कोई

आ ही धमकता था दादके या नानके से,


गांव का कोई रिश्तेदार,

पिता के ऑफिस से कोई,

पड़ोस वाले दादा जी

या पड़ोस की कोई मौसी

अचार डलवाने, स्वेटर की बुनती सीखने

या किसी और बहाने से।


और माँ घर आये मेहमान को

बिना खिलाए कहाँ भेजती थी!

मैं नाराज़ होती

तो माँ सुनाती कहानी

"अतिथि देवो भव" की।

अब वो कौवे जाने कहाँ चले गए

मुंडेर पर बोलते ही नहीं।

अब अतिथि को देख

कोई खुश नहीं होता।


अतिथि के लिए भोजन बनाने की

फुरसत नहीं किसी के पास।

कुछ भी तो नही बचा अब,

मुंडेर पे बोलने वाले कौवे

"अतिथि देवो भव" वाली मां।


अचार, स्वेटर के बहाने

दुख सुख बांटने वाली मौसी

रोज़ अखबार मांग कर पढ़ने

और बदले में ढेरों

आशीर्वाद देने वाले दादा जी

कुछ भी तो नहीं बचा।


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