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Neetu Lahoty

Drama

5.0  

Neetu Lahoty

Drama

जीने दो मुझको भी

जीने दो मुझको भी

1 min
289


क्या हुआ जो आठ बजे उठती हूँ 

क्या हुआ जो देर रात मोबाइल पर चैटिंग करती हूँ 

मैने तो कभी कहा नहीं 

तुम जल्दी क्न्यो सो जाते हो 

मैने तो कभी पूछा नहीं 


तुम मोबाइल पर घंटों क्या करते रहते हो 

अर्धांगनी हूँ कोई ख़रीदी हुई जागीर नहीं 

मेरा अपना भी अस्तित्व है 

मेरे अपने भी शौक हैं 

कौनसी जिम्मेदारी है जो 


मैने पूरी करी नहीं 

कौनसे ऐसे बंधन है जो मैने माने नहीं 

कहते हो तुम हमेशा कि 

तुमने मुझे कभी रोका टोका नहीं 

तो ये भी बताओ मैने कब निकाले मीन -मेख 


कब तुम्हारी बातों को माना नहीं 

अब उम्र के इस पड़ाव पर 

जब हल्की सफेदी है कनपटी पर 

आँखों पर ऐनक चढ़ी है 


फिर भी मन मर्जी का न करुँ 

तो ये भी अब गवारा नहीं 

खुद के लिये न जियू ये तो 

संभव नहीं 

अब तो जीने दो मुझको भी

अपने हिसाब से।


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