हमारा आँगन
हमारा आँगन
शहर बसने लगे
अट्टालिकाओं में
अब हम रहने लगे !
घर की शोभा
हमारे आँगन
लुप्त होने लगे !
सांस्कृतिक हलचल
पर्व --त्यौहार
आँगन की रंगोली
हम भूल गए !
सब गतिविधियाँ
शयनकक्ष में
सिमट कर रह गये !
कहाँ होगा
गीत -नाद
कहाँ होगा परिक्षण ?
कहाँ होगी
वैसी शोभा
कहाँ होगा अरिपण ?
पायल की
रुनझुन
गीत -नाद ,
नाच -गान
आँगन में होते थे !
कितने भी
लोग आयें
आँगन में सारे
के सारे समा जाते थे !
खुले -खुले
आँगन में
सांस नहीं फूलते थे !
छोटे -छोटे
पेड़-पौधे
ताजगी हमें देते थे !
आँगन की
लहक -चहक
कहीं -कहीं मिल जायेगी
आने वाले
लोगों के लिए
सिर्फ यादें रह जाएँगी !