माँ
माँ
धरती पर भगवान का दूसरा रूप होती है माँ,
अँधेरी रातो में एक उज्याला सा होती है माँ,
नदी के जल जितना शीतल होता है माँ का प्यार,
समुंद्र कि गहेराई जितना गहरा होता है माँ का प्यार,
समझ सको तो समझ लो यही है माँ का प्यार
हाँ, हाँ यही है माँ का दुलार।
माँ तो एक ऐसी मानता की मूरत है,
जिसकी न होती कोई सूरत है,
कभी डाट या फटकार कर,
तो कभी प्यार से पुचकार कर
समझा देती हर बार,
जब भी थकने लगते
वो कभी न माने देती हार,
अरे यही तो है माँ का प्यार !