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Amit Kumar

Abstract Drama Tragedy

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Amit Kumar

Abstract Drama Tragedy

बदलाव

बदलाव

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सूरतें बदल रही है

सीरते बदल रही है

उफन रहा है लहूँ

कीमतें बदल रही है

2 की चीज़ 2000 की हो रही है

ऐसा लगता है कम्पनियाँ चल रही है


और सरकारें सो रही है

आम आदमी गड्ढे में गिर रहा है

पैसों की खातिर इंसानियत तार्-तार् हो रही है

साँस को साँस नहीं मिल सकी

इस डिजिटल दौर में

डेटा वालोंं की नींदें अब हराम हो रही है


समय है पर जाए कहाँ

समय है पर बुलाए कहाँ

समय है पर कोई मिल नहीं सकता

समय है पर कोई हिल नहीं सकता

ऐसे समय की देखो बहार खो रही है

ज़िंदा है लाशें और शरीर मर रहे हैं


अपने ही देखो अपनों का बहिष्कार कर रहे है

जो तन्हा है वो मस्त है

जहाँ जनता का आगमन है

वहाँ सब कुछ बुरी तरह त्रस्त है

ईश्वर से मिलकर आओ हम दुआएँ करें

अराजकता का माहौल है हम आपस मे सुलह करें


भूल कर जात-पात् हम एक हो जाए

ऐसी सुबह जल्द हो जब सब एक सोच हो जाये।


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