STORYMIRROR

Archana Saxena

Abstract Inspirational

4  

Archana Saxena

Abstract Inspirational

सुख दुख का संगम

सुख दुख का संगम

1 min
382

एक दूजे संग डोर बँधी है

सुख दुख का संगम है जिन्दगी

सूख को तो सारे ही पूजते

दुखों की भी तुम कर लो बन्दगी 


दुखों का तड़का नहीं लगे तो

सूख का मूल्य जानोगे कैसे

यदि विछोह जीवन में न हो

प्रेम मिलन समझोगे कैसे


चाय में चीनी की मिठास है

पत्ती की कड़वाहट भी

कड़वाहट यदि नहीं घुलेगी

 चाय कड़क भी कैसे होगी


माँ जब पीड़ा सहती तब ही

गोदी में उसके शिशु खेले 

समुद्र मंथन में पहले विष,

 बाद में फिर अमृत निकले


गुलाब की माला पिरोने पर

 काँटे भी हाथ छलनी करते

पहले काँटे अलग करें

 फिर दामन फूलों से भरते


रात हो कितनी भी अँधियारी

 और भले ही बहुत ही काली

प्रातः काल तो नित है आता

 साथ में लेकर सूर्य की लाली


वसंत खिले जो जीवन में तो

 पतझड़ भी तो आयेगा ही

पर पतझड़ को भी जाना है

 उपवन फिर खिल जायेगा ही


यह संसार तो गतिमान है

 कोई इसको रोक न सका

तपती दुपहरी में जो लू थी

 साँझ ढले चले ठंडी पुरवा


तू भी कैसे रोक सकेगा

सुखों को कैसे पकड़ पायेगा

इनका तो अभिन्न है नाता

 इक आयेगा इक जायेगा

  

    


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract