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aazam nayyar

Abstract

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aazam nayyar

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चाहत

चाहत

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दिल डूबा क्यों फ़िर उसकी चाहत में

है वो ही जब डूबी आँखें नफ़रत में


वो बात नहीं प्यारे नफ़रत में करनी 

मिलकर रहने में जो बात मुहब्बत में 


बोल रहा झूठ सभी वादों में लोगों 

सच्चाई उसकी तो नहीं सियासत में 


दोस्ती का फ़ूल क़बूल किया कब उसनें 

रक्खा दिल उसनें रोज़ भरा अदावत में 


जीतेंगे जंग जरूर नफ़रत वालों से 

केस पड़ा उल्फ़त का यार अदालत में 


देखे वो करता "आज़म" प्यार क़बूल मगर 

लिक्खी है हर बात उसे दिल की ख़त में.

आज़म नैय्यर 


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