फिर जिया जाए
फिर जिया जाए
मरने से पहले ही क्यों मरा जाए
चलिए मुस्कुराइये , थोड़ा जिया जाए ।
माना काली अभी बदरी है
कहीं बेरहमी से बरसी है
पर कितनी जमीनों की प्यास
भी ये हरती है
कहीं धान लहराता है
तो फूल कहीं खिलते है
बच्चों से बुजुर्गों तक हर
चेहरे मुस्कुराए है
उनके ही चेहरों की मुस्कान से खिला जाए
चलिए भी थोड़ा और जिया जाए ।
सूरज में अभी ताप बहुत है
फिजाओं का मिजाज रौद्र है
पर साँझ अभी भी लगे है प्यारी
रातों की तो बात निराली
एक दूजे का थामे हाथ
चल कर ले कुछ मीठी बात
क्यों आँखो को आँखो से मिलने से रोका जाए
अपनो के आंचल से हर सुख भिगोया जाए
चलिए ना जिंदगी है फिर जिया जाए ।