हर रात के बाद सवेरा होता है
हर रात के बाद सवेरा होता है
अंधियारी का रूप निधारूण,
प्लावित हुआ हो जिसमें अरुण,
खोज प्रभा की करने साकार
तुम्हें बनना होगा ज्योति का आगार ।
जो हौसलों से उड़ान भरते हैं
वे गिर कर उठा करते हैं,
तम के धूमिल में अपना नभ खोजते
वे सफलता की कविता पिरोया करते हैं।
असमंजस का प्रतिबंध न रोक सके उस दरिया को ,
जो साहिलों की बाधा लांघ कर निरंतर बेहता जाए,
ना विनष्ट कर सके व्यथा की चिंगारी उस चित्त के आंगन को ,
जिसमें खुशियों से तल्लीन हर दु:ख भी मुस्कुराए।
समुद्र के शोर में, तम के घोर में,
मरूस्थल से सीप में, गरिमा का द्वीप लिए,
विपस्सना का अनुगामी, सहनशीलता का अनुभवी,
सीप में मोती बन जाता है।
बंजर ज़मीन की वेदना सुन
बादल भी अश्क छलकाएँगे,
अंधियारीकी प्रतिष्ठा
रूपल- वितान के तत्व दरशाएँगे।
कठिनाइयों की सहजता जो निरखे,
वह विजय की संशोधन में लगा रहता है,
विकटता वक़्त की गुलाम है,
हर रात के बाद सवेरा होता है।