फिर एक कविता पिरोनी है
फिर एक कविता पिरोनी है
ख़्यालों की नदियाँ जैसे हैं मन में बह रहीं,
यह पंक्तियाँ जो हैं शीत की बयार
और ग्रीष्म की किरणें सह रहीं,
उन ख़यालों की नदियों को स्याही से मिलाना है,
इन पंक्तियों की सिलनी कहानी है,
आज फिर एक कविता पिरोनी है।
रोगी मन की जो प्यास है,
अवनति कर रहा जो विश्वास है,
मन पर करनी शब्दों की बरसात है,
फिर विश्वास की ज्योत जलानी है,
आज फिर एक कविता पिरोनी है।
एक दुल्हन के खुशियों के मिलन की
एक विधवा के सुख के विभाजन की,
एक अनुराग- रस में डूबी हुई,
एक विरह व्यथा से टूटी हुई,
इन रसों की माला गूँथनी है,
आज फिर एक कविता पिरोनी है।
उपवन में करते जो कुसुम श्रृंगार है
विटप से गिरते पत्ते जो देते पुकार है,
उस उपवन की सुंदरता का करना बखान है,
इन पुकारों की बुलंद करनी जुबानी है,
आज फिर एक कविता पिरोनी है।
माँ की ममता का जो दामन है
पिता के प्यार का जो आँगन है
उस दामन के स्वाभिमान को ओढ़े रखना है,
है खिलना इस आँगन की झोली में,
आज फिर एक कविता पिरोनी है।
स्मृति गलतियों की जो हैं बचपन की नादानी की,
नसीहत देती है घटनाए अल्हड़ जवानी को,
एक कली से फूल बनने का सफर करता तय जो
उस पीढ़ी की ज्वाला बढ़ानी है,
आज फिर एक कविता पिरोनी है।