STORYMIRROR

Monika Sharma

Abstract Inspirational

4  

Monika Sharma

Abstract Inspirational

भाल की हुंकार

भाल की हुंकार

1 min
166

आज वक़्त ले विराम खड़ा,

कलम की स्याही क्यों मौन धरी ?

अंबर नीलम सुशोभित वही,

फिर क्यूँ पवन भीरु सी बने ?


क्यों नतमस्तक खड़े है शस्त्र

प्रताप-विभव से जो संचित है ?

क्यों अमर तिरंगा अपनी ही

विजय के मंज़र से वंचित है ?


इस प्रदेशी माटी की विडंबना  

 भुजाओं को ललकार रही,

भारत का अंबुज खिल उठा,  

 रंजीत-सी एक हुंकार उठी,

हर कदम में चेतक वेग सा 

आज भी राणा- रक्त उबाल रहा,

इन्द्रधनुषी वक्र पवन चीरता  

 नीरज का भाल गिरा। 


अमर तिरंगा लहरा उठा-

प्रतिकार प्रहार बैरी माटी पर, 

स्वर्णिम इतिहास रचा दिया

भारत ने जापानी माटी पर। 


इतिहास तू पन्नों में अपने, 

 नमन दे इस युगावतार को, 

कलम तू ललकार लिख, 

आवाज़ दे इस हुंकार को,

तन में उमंग हिलोर जो उठा दे 

क्षण शोर, 

घोर चेतना युवा की जगा दे। 


दिनकर की ललकार,  

तुलसी का संस्कार हो,

कवि भूषण का ओज गुण, 

नीरज का आकार हो

विजय की गूंज उठे,


वसुंधरा गुंजायमान हो, 

विजय तिलक से श्रृंगारित 

 स्वर्णिम भारत का इतिहास हो 

अंबर से भी ऊंचा ये जहां हो। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract