तुम जिंदा रखना
तुम जिंदा रखना
सपने उड़ान के
बुलंद गीत गाते हैं,
पर क्यों ज़मीन ढूँढ़ नहीं पातें?
और आसमान चाहते हैं।
जो ध्येय का प्रतीक स्वयं बन
आशा की किरणें जगाते हैं,
क्यों कुछ सपने डगमगाए से,
अपना परिचय भूल जाते हैं।
जिनमें ऊंचास की शवास समाती हो,
जिन्हें लक्ष्य संजीवनी की तलाश सताती हो,
क्यों वे पंख मुर्झा जाते हैं?
कम्पित भय से लौट आते हैं?
जो ज्योति का आगार हैं,
वे क्यों तम के आगे लाचार हैं?
कहानियाँ रचने वाले ये सपने
बंद रह गए मन की किताब में,
पर अंधकार को मात देता,
अपने भय से विदा लेता,
आँधी के धूमिल में अपना नभ खोजता,
एक सपना तुम जिंदा रखना।।