None
स्वर्णिम भारत का इतिहास हो अंबर से भी ऊंचा ये जहां हो। स्वर्णिम भारत का इतिहास हो अंबर से भी ऊंचा ये जहां हो।
वीर रस से सींची यह कविता जो गाती आज़ादी की वाणी है. वीर रस से सींची यह कविता जो गाती आज़ादी की वाणी है.
उस पीढ़ी की ज्वाला बढ़ानी है, आज फिर एक कविता पिरोनी है। उस पीढ़ी की ज्वाला बढ़ानी है, आज फिर एक कविता पिरोनी है।
पर क्यों ज़मीन ढूँढ़ नहीं पातें? और आसमान चाहते हैं। पर क्यों ज़मीन ढूँढ़ नहीं पातें? और आसमान चाहते हैं।
जो हौसलों से उड़ान भरते हैं वे गिर कर उठा करते हैं. जो हौसलों से उड़ान भरते हैं वे गिर कर उठा करते हैं.
अपने मान की विनती नहीं, हूँ रक्षक मैं, मैं नारी हूँ ! मुझसे तुम और तुमसे मैं। अपने मान की विनती नहीं, हूँ रक्षक मैं, मैं नारी हूँ ! मुझसे तुम और तुमसे ...