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Amit Kumar

Abstract Drama Inspirational

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Amit Kumar

Abstract Drama Inspirational

सच

सच

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दर्द अपने -अपने 

 छिपाए बैठे है 

झूठी और खोखली

 मुस्कुराहट के पीछे 

जाने किस पल यह झूठ

 बिक जाये करोड़ों में...... 


जो सुझबुझ के किस्से थे

वो सब कब अपने हिस्से थे

जो मिल जांऊ बेगानों से

कुछ तो ऐसा हो 

जो खो जाउँ बाजारों में

तुमने जो कहा कब मैंने सुना


मेरी कही कब तुमने जानी

यह दिल की जो बातें है

दिलदार ही समझ सकते है

जो झूठ से बाबस्त है

वो सच के आगे कहाँ टिकते हैं।


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