खिले जो' उपवन में' फूल सुंदर नजारा' कुदरत का' मन को' भाता।।
खिले जो' उपवन में' फूल सुंदर नजारा' कुदरत का' मन को' भाता।।
खिले जो' उपवन में' फूल सुंदर नजारा' कुदरत का' मन को' भाता।।
उड़ान भरता है' आसमाँ में ये' मन का' पंछी मचल है' जाता।
बहार आने से' पेड़-पौधे यूँ' दिखते' जैसे सजी हो' दुल्हन
धरा पे' आई है' फिर रवानी ये' नभ मिलन का है' गीत गाता।।
सजी लताएं ये' हँसके कहती सनम तुम्हारी मैं' राह देखूँ
सदा बरसना यूं' मेघ बनकर गरज को'सुनकर करार आता।।
हवा चले जब ये' मन्द सुरभित उड़े है' आँचल तो' रात होती।
ये' रात सजती सितारों' के संग तब ये' चँदा प्रकाश लाता।।
समय कभी भी नहीं है' रुकता बढ़े चलो अपनी' मंजिलों पर
तना औ' डाली है' सीख देती रखें सदा जड़ से' मूल नाता।।
तर्ज: सुनाई देती है जिसकी धडकन हमारा' दिल या तुम्हारा' दिल है।
