दिनकर
दिनकर
हे 'उर्वशी'कार!
तुझे 'परशुराम की प्रतीक्षा' थी
जो जीवन के 'कुरूक्षेत्र' मे
'रश्मिरथी' हो
जो 'धूप धुँआ', 'धूप छाँव' आदि
के 'द्वन्दगीत' मे ना उलझे
जिन्हे केवल 'इतिहास के आँसू' नही
हकीकत मे 'मिर्च का मजा' ,
'नीम के पत्ते' भी विचलित ना कर सके
राष्ट्र निर्माण गर महायज्ञ है
तो 'सामधेनी' बन
'बापू' के राष्ट्र का
विश्वगुरू बनाने के लिए
'हिमालय' से 'हूँकार' करे
हे 'रामधारी सिंह दिनकर'!
आज हमे भी उन सभी के साथ
आपका भी इन्तजार है
जो 'हारे को हरिनाम' नही
'रेणुका', 'रसवन्ती' के
मोहपाश से दूर
'दिल्ली' की
'आत्मा की आँखे' खोल
'नये शुभाशीष' दे
और आप कर सकते हो
आप 'रेत के फूल' खिला सकते हो
हे 'कविश्री'!
'भगवान के डाकिए' बन
अपनी 'मिट्टी की ओर' देख
'संस्कृति के चार अध्याय' के साथ
और कुछ नया जोड़
तेरी हर गीत, हर शब्द
आज भी जुबान पर है
और कौन भूल सकता है ?