चांद सा हसीन
चांद सा हसीन
चांद सा हसीन कोई देखा ना था,
पर उस रोज़ चांद सा हसीन कोई मिला था,।।
मेरे महबूब की झलक जब इन नज़रों को मिली,
ये फिज़ा मानो हज़ारों रंगों से रंग गई,
ये कैसी प्रीत मैंने लगाई,
उसकी रंगत पर अपनी सुध मैने बिसराई,।।
चांद सा हसीन कोई देखा ना था,
पर उस रोज़ चांद सा हसीन कोई मिला था,।।
उसकी आंखों में एक कसक थी,
हाथों में चूड़ियों की खनक थी,
बदन पर मलमली लिबास था,
आंखों में जयपुरी सूरमा था,।।
"color: rgb(0, 0, 0);"> चांद सा हसीन कोई देखा ना था,
पर उस रोज़ चांद सा हसीन कोई मिला था,।।
खुदा ने क्या नायाब कारीगरी की है,
बड़ी बारीखी से मेरे महबूब की हसरत रची है,
सारी रात उसकी चांदनी की छाव में काट दी,
हमने तो कोरी किताब अपने महबूब की तारीफ से भर दी,।।
चांद सा हसीन कोई देखा ना था,
पर उस रोज़ चांद सा हसीन कोई मिला था,।।
काबिल ए तारीफ है वो,
किसी का मुकम्मल ख्वाब है वो,
हर सुबह मांगी जो दुआ उसका सबक है वो,
वाकई चांद सा हसीन है वो,।।