चित्रा का वक्तव्य पुष्पक के बारे में..
चित्रा का वक्तव्य पुष्पक के बारे में..
वो शख्स..
स्नेह में ही ताकत है "समर्थ" को झुकाने की..
वरना सुदामा में कहाँ ताकत थी..
"मुरलीवाले" से पैर धुलवाने की..
वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया,
एक गुजरते हुए साल में नया साल बनकर आया।
में तन्हाई में ढूँढा करती थी अक्सर जिस हाथ को,
वो उस हाथ में मेरे लिए तकदीर लिखकर लाया।
वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया।
मैं हार कर ज़माने से लगी मायूसी को गले लगाने,
वो उस मायूसी में मेरी जिंदगी को पढने आया।
वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया..
मैं बंद परिंदे की तरह एक साज़ गा रही थी,
वो उस साज़ में मेरे लिए एक आवाज़ लेकर आया।
वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया..
मैं मूँद पलकें अपनी अँधेरे में जा रही थी,
वो उन बंद पलकों पर सपने सजाने आया।
वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया..
मैं धडकनों को काबू करके साँसों से लड़ रही थी,
वो उन धडकनों को सीने में फिर धडकाने आया।
वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया..
मैं होठों से लेने में डरा करती थी जिन लफ्ज़ों को,
वो उन लफ्ज़ों को अपने कानों से सुनने आया।
वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया..
मैं टूट कर अन्दर से ज़र्रा-ज़र्रा हो चुकी थी,
वो उस ज़र्रे को भी सुहागन बनाने आया।
वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया..
सब कहते हैं कि “भगवान” होता है यहीं पर,
वो उस “भगवान” में मुझको मेरा अक्स दिखाने आया।
वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया,
एक गुजरते हुए साल में नया साल बनकर आया।