नारी कब कमज़ोर होती है
नारी कब कमज़ोर होती है
नारी प्रकृति का सशक्त हस्ताक्षर होती है,
वरदान रूप पृथ्वी पर आ जाती है
जिस घर मे रहे,सौभाग्य दे जाती है
आशीष दे दूसरे घर भेजी जाती है
दोनों घरो में वो पराई मानी जाती है
तब नारी कमजोर हो जाती है
मासूम सी कोमल होती है
अपनी जगह खुद बनाती है
किसी के बहकावे में नहीं आती है
जब अपना कोई डरा देता है
तब नारी कमजोर हो जाती है
अपने घर को स्वर्ग बनाती है
सारे जोखिम उठा वो जाती है
मुसीबतों से नहीं घबराती है
अकेली सब पे भारी पड़ जाती है
जब अपने ही समाज की दुहाई देते है
तब नारी कमजोर हो जाती है
है ममता की मूरत वो
हॄदय में प्रेम बसाती है
दुख देख दुसरो का
आंखे बरबस भर भर आती है
दुनिया इसको ढोंग कहे
तब नारी कमजोर हो जाती है
जब अपने ही समझ न पाते है
उसकी बेबाकता को बेशर्मी बतलाते है
अपनो की ही फिकर करे,
वो ही उसको बदनाम करे,
तब नारी कमजोर हो जाती है।
जब वो धन से तोली जाती है
खूबसुरती,लावण्य को ही
उसकी चाहत बताया जाता है
त्याग, समर्पण को नगण्य माना जाता है
तब नारी कमजोर हो जाती है
जब मशीन सी जान उसको निचोड़ा जाता है
सन्तान उत्पत्ति मात्र साघन माना जाता है
हवस की जब बलि चढ़ाई जाती है
उसकी सुनवाई भी नही हो पाती है
तब नारी कमजोर हो जाती है
प्रीत के वृक्ष पर वो श्रद्धा के फुल खिलाती है
आँगन की तुलसी पर आत्मा का वैभव लुटाती है
अपना सर्वस्व लूटा कर वो खाली हाथ हो जाती है
तब भी अपनोको खुश देखकर
खुश वो हो जाती है
जब पति या सन्तान उसको नही समझ पाते है
तब नारी कमजोर हो जाती है।