रूह
रूह
तुम्हारी रूह आसपास ही होती हैI
मुझे घर की हर चीज में दिखती है
मेरे माथे में गीले होंठों की नमी देती है
और मुझको खुद में समेटती हैं
तुम्हारी रूह आसपास ही होती हैं
मैं उसे तुम्हारे बिस्तर पर अब भी पाता हूं
झलक दिखा के इक मुझे छू हो जाती हैं
दूसरी पलक के झपकते ही नाराज होती है
तुम्हारी रूह आसपास ही होती है
तुम्हारे दिलाए स्वादों को ज़ुबाँ भूलती ही नहीं
जायका तुम्हारी बातों का ख़यालों से जाता ही नहीं
अब भी खुशबु तुम्हारी कुछ नयी सी महकती है
तुम्हारी रूह आसपास ही होती है
छाप हर कोने में हैं तुम्हारी
मुझको आदत भी है तुम्हारी
यूँ कभी वो शरारत नहीं होती हैं
तुम्हारी रूह आसपास ही होती है
मैं अब भी जब घबराता हूँ अपने अंधेरों में खो जाता हूँ
टटोलते हुए तुम्हारे कमरे में आता हूं और
सिमटती है तुम्हारी गोद में हर ख़लिश
तब भी
तुम्हारी रूह आसपास ही होती हैं I