बनारस की गलियों में
बनारस की गलियों में
बनारस की गलियों में ,मैं तुम्हें ढूंढ रहा पहले जैसी चैन कहाँ ,
न ही अब सुकून रहा !
बनारस की गलियों में मैं तुम्हें ढूंढ रहा -- रूक सी जाती है जिंदगी ,
ठहर सा जाता खुशनुमा सफर ।
जब बरसती है यादों की बूंदे ,छा जाती मिलने की लहर।
अब मधुर मुस्कान कहाँ ,शरारत की जज्बात् कहाँ !
आये हैं यहाँ सपने की उड़ान लेकर ,कुछ कर गुजरने की जुनून रहा ।
बनारस की गलियों में मैं तुम्हें ढूंढ रहा --- बिताये गये तुम्हारे संग वो यादगार पहर !
खिल जाता थे दिल के फूल, आ जाती सुकून की बहर
वो दिन भी क्या थे जब तुम मेरे कंधे पर अपने मस्तक रख तुम मुझमें मैं तुझमें खो जाता !
तेरे जुल्फों को सहलाते हुए अब वो कहाँ मशगून रहा --
बनारस की गलियों में मै तुम्हें ढूंढ रहा ----
पर तुझे पाने के ही खातिर, मैं तुमसे दूर यहाँ !
सुना -सुना सबकुछ लगता ,क्या तुम्हें भी मेरी याद आती है ?
कुछ दिन भूल जाओगी सब ,पर मुझे यादें विस्मृत करने की सुध कहाँ ??
बनारस की गलियों में मैं तुम्हें ढूंढ रहा ---

