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Brijlala Rohanअन्वेषी

Romance

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Brijlala Rohanअन्वेषी

Romance

बनारस की गलियों में

बनारस की गलियों में

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बनारस की गलियों में ,मैं तुम्हें ढूंढ रहा  पहले जैसी चैन कहाँ ,

न ही अब सुकून रहा !

बनारस की गलियों में मैं तुम्हें ढूंढ रहा -- रूक सी जाती है जिंदगी ,

ठहर सा जाता खुशनुमा सफर ।

जब बरसती है यादों की बूंदे ,छा जाती मिलने की लहर। 

अब मधुर मुस्कान कहाँ ,शरारत की जज्बात् कहाँ !

आये हैं यहाँ सपने की उड़ान लेकर ,कुछ कर गुजरने की जुनून रहा ।

बनारस की गलियों में मैं तुम्हें ढूंढ रहा --- बिताये गये तुम्हारे संग वो यादगार पहर !

खिल जाता थे दिल के फूल, आ जाती सुकून की बहर        

वो दिन भी क्या थे जब तुम मेरे कंधे पर अपने मस्तक रख तुम मुझमें मैं तुझमें खो जाता ! 

तेरे जुल्फों को सहलाते हुए अब वो कहाँ मशगून रहा --

बनारस की गलियों में मै तुम्हें ढूंढ रहा ----

पर तुझे पाने के ही खातिर, मैं तुमसे दूर यहाँ !

सुना -सुना सबकुछ लगता ,क्या तुम्हें भी मेरी याद आती है ?

कुछ दिन भूल जाओगी सब ,पर मुझे यादें विस्मृत करने की सुध कहाँ ??

बनारस की गलियों में मैं तुम्हें ढूंढ रहा ---


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