बदनाम गलियाँ
बदनाम गलियाँ
आज गुज़र रहा हूँ मैं
बदनाम गलियों से
सामना हुआ है मेरा
फूल-अधखिली कलियों से
कोई डाली सज सवर कर
बालकनी से झाकती
या कोई नज़रे मुझको
लगातार ताकती
मानो मुझसे कर रही हो
मदद की गुहार
या फिर कोई खड़ी हो
लिए बाहों का हार
हैरान हूँ मैं पागल
इनकी अठखेलियों से
आज गुज़र रहा हूँ मैं
बदनाम गलियों से
देख रहा हूँ भवरों को
इन् पर मंडराता
या फिर किसी माली को
इनका दाम लगता
गैरत मंद भी है शामिल
इनकी कतार में
निर्लज्ज हैं लिप्त देखो
देह व्यापार में
अचरज है मुझको
इनकी रंगरलियों से
आज गुज़र रहा हूँ मैं
बदनाम गलियों से
यहाँ रोज़ लगती है
दुशाशन की सभा
हर क्षण चीर हरण होता
मूक हैं आज भी प्रजा
चरित्र को भेदते हैं
समाज के साहूकार
जो स्वयं कर रहे
संरक्षण का झूठा प्रचार
काश! समाज रूबरू होता
ऐसी पहेलियों से
आज गुज़र रहा हूँ मैं
बदनाम गलियों से।
