हंगामा न कर
हंगामा न कर
रात की ठोड़ी पर बैठे चाँद का झिलमिलाना तुम्हारे रुख़सार की याद दे गया..
बिखरी लटों वाली लड़की चाँदनी में नहाते तुम जब झांकती थी झील में, नखशिख स्वप्न परी सी लगती थी..
ये वादियों में गिरती चाँदनी की बूँदों से पिघलती कायनात की परतें
पसीजती थी तुम्हारी हथेलियां मेरे हाथों की गर्मी में घुलकर उस लम्हें की याद दिलाती है..
कह दो अपनी यादों से थम जाए ख़्वाब बैठा है मेरी पलकों पर, तसव्वुर से मेरी दूर जाओ तो ज़रा नींद आए..
हंगामा न कर कुमुदिनी यूँ कल्पनाओं की क्षितिज पर बैठे, चाँदनी रात में तड़पते कोई खता न हमसे हो जाए..
यकीन करो इश्क है बेइन्तहाँ तुमसे फासलों पर दिल दहलता है
चाँदनी रात में तुम्हारी याद आते ही आशिक के चैनों करार का जनाज़ा निकलता है।

