सोचूँ कभी चिड़िया बन जाऊँ
सोचूँ कभी चिड़िया बन जाऊँ
सोचूँ कभी चिड़िया बन जाऊँ,
नीले गगन में उडूँ लहराऊँ।
कभी सूरज की किरणें देखूँ,
लिपट- लिपट के चमक मैं जाऊँ।
भोर को तड़के जल्दी उठ के,
चिड़ियों संग मिलके गाना गाऊँ।
चीं- चीं करके अंगना में सबके,
मीठी बोली मैं सिखलाऊँ।
छू के पर्वत राज हिमालय,
तेरी महिमा को मैं गाऊँ।
तूफानों से नहीं डरूँ मैं,
चीर के उनको राह बनाऊँ।
बनूँ मैं एक आज़ाद परिंदा,
सीमा लांघ संदेशा पहुँचाऊँ।
बाँध परों में लाखों तारे,
अपनी खिड़की पे चमकाऊँ।
बादलों की करूँ सवारी,
इधर-उधर उनको बरसाऊँ।
जहाँ न पहुँची दुनिया सारी,
गगन चूम के मैं आ जाऊँ।
