लकीर
लकीर
बनो लकीर के न फकीर तुम,
अपनी राह बनाओ ।
अपने भाग्य की यह लकीर भी,
अपने हाथ बढ़ाओ ।।
बड़ी लकीर भी बिन काटे भी,
खुद छोटी बन जाती ।
मगर बड़ी उससे लकीर जब,
उसके बगल खिंच जाती ।।
मत खींचो कोई लकीर भी,
अपने बीच विग्रह में ।
अपने तो अपने ही होते,
कभी न कभी जीवन में ।।
खींचो नहीं लकीर कर्म में,
बंधो न माया - छल से ।
रहो स्वच्छन्द लकीर न बंधो,
आत्मा को इस फल से ।।
लिखी विधाता ने लकीर है,
भाग्य की जैसी जितनी ।
लाभ - हानि, यश- अपयश की भी,
प्राप्ति होगी उतनी ।।
यह लकीर है बड़े काम की,
इस पर कभी न मरना ।
अगर बदलना चाहो इसको,
कर्म कठिन है करना ।।
