बचपन
बचपन
उस चाँद के लिए
मैंने भी जिद की होगी
माँ ने मुझे पानी का चाँद दिखाया होगा
कभी भाग के कभी छिप के
मैंने भी माँ को सताया होगा
पानी की बाल्टी में
अपने हाथों से छप- छप करके
कपड़ो को अपने भीगाया होगा
फिर माँ ने गुस्से में आकर
प्यार से चांटा लगाया होगा
पापा ने कंधे पर बैठाकर
मेला मुझे घुमाया होगा
मंदिर की घंटी या फिर
तालियों कि गूँज में नाचकर
बेताल डांस में सबको खूब हँसाया होगा
पापा के कंधे और माँ की गोदी में सोकर
सुकून उन्हें दिलाया होगा।