पत्थर की मूरत भी बोलती है
पत्थर की मूरत भी बोलती है
आज एहसास हुआ की
पत्थर की मूरत भी बोलती है
तस्वीरों में, चित्रों में दिखने वाली वो
सूरत भी बोलती है
तू कण - कण में रहने वाला भगवान है
तेरे तो नगमें कुदरत भी बोलती है
शंख की गूंज में तू समाया है
हर फूल में तूझे ही पाया है
बिजली की गड़गड़ाहट में तेरा नाद है
बारिश की बूंदों में तेरा प्रसाद है
बच्चे की छवि सा तेरा रूप है
इंसान की हंसी सा तेरा स्वरूप है
इन नदियों इन हवाओं को तूने ही बनाया है
इस दुनिया का हर पत्ता तूझसे ही हिल पाया है
तू ही तो शक्तिमान है
तूझसे ही ये जहाँन है
तू अतूलनीय है
तेरी तूलना से तो मेरी रूह भी डोलती है
तू सूक्ष्म है तो विशाल भी है
तू तीक्ष्ण तो रसाल् भी है
तू उषा है तो अंधकार भी है
तू बंजर है तू भंडार भी है
ये मैं नहीं
ये तो तेरी कलाकारी की फुरसत भी बोलती है
आज एहसास हुआ की पत्थर की मुरत भी बोलती है।
