घरेलू हिंसा के शिकार बच्चे..
घरेलू हिंसा के शिकार बच्चे..
ये घरेलू हिंसा बच्चों पर
कुछ ऐसे असर दिखाती हैं
जिंदगी की नाजुक पल
और ये हर रोज की
कीच-कीच, अनबन
सच में बच्चों को पूरी तरह से कमजोर कर देती हैं।
ये सब देख-देख कर बच्चे इतने टूट जाते हैं,
दिन के उजालों में भी उन्हें बस
अँधेरे ही अँधेरे नज़र आते हैं।
घर के हर रोज की ऐसी हालात उन्हें
अंदर तक चोट पहुंचा जाते हैं।
घर के चाहे कोई सदस्य हो
या हो माता-पिता ही क्यों ना
उनके बीच की हर रोज की अनबन देख कर
बच्चे अपनी मासूमियत खो रहे हैं,
देखो ना।
बेजान खिलौनों जैसे,
बच्चे भी
बेजान से बन जाया करते हैं,
जब अपनों के बीच ही लड़ाई-झगड़ो का नज़ारा
हर रोज देखा करते हैं।
उन घरों के मासूम
अक्सर भूखे भी सो
जाया करते हैं,
किसी रोज जिन घरों में
घरेलू हिंसा के कारण
चूल्हे तक नहीं जला करते हैं।
वो नादान भी कितना कतराते होंगे
जब पड़ोसी बच्चे उनके घर से आये
शोर शराबों की आवाज के बारे में पूछा करते होंगे।
वो मासूम कितने सहम जाते हैं
जब डरा -धमका कर उनके रोने की आवाज को दबा दिए जाते हैं,
ये समझदार लोग भी क्या कसर दिखाते हैं,
आपसी मनमुटावों को समाज से छीपा कर बंद दरवाजे के पीछे
नासमझ बच्चों को दिखाते हैं।
शायद कुछ बच्चे
घर से दूर रहने के सपने
बचपन से ही इसलिए भी पाला करते हैं
हो सकता है ये वही बच्चे हैं जो
हर रोज अपने घरों में
मार-पिट व लड़ाई-झगड़े
आये दिन देखा करते हैं।
शरारत करने की उम्र में
अक्सर बच्चे जवान बन जाते हैं,
जब हाथ उठा रहे पिता से
अपनी माँ को बचाते हैं।
आखिर क्यूँ माँ -बाप ये समझ नहीं पाते हैं,
क्यूँ आपस की खटक में
बच्चों को भी शामिल कर लेते हैं।
नासमझी की उम्र में भी
बच्चों को ना जाने क्यूँ
घटिया सी घरेलू हिंसा की परिस्थिति से झेलना सिखाया जाता हैं,
सफ़ेद झूठ और काले सच से आये दिन अवगत कराया जाता है।
यूँ ही नहीं समाज का हर दूसरा बच्चा मन से टूटा हुआ है
क्या पता शायद ये वही बच्चा है
जो कल रात ही घरेलू हिंसा देखा हुआ है...