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Juhi Grover

Tragedy Crime

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Juhi Grover

Tragedy Crime

दुनिया का चक्र कैसे चल पाए

दुनिया का चक्र कैसे चल पाए

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क्या कहें पैदा होती बच्ची को,

वो पैदा न हो या फिर कोख में ही मर जाए,

खत्म पैदाइश जब उसकी हो,

तब दुनिया का ही चक्र कैसे चल पाए।


आखिर क्या गलती थी उसकी,

जो हर बार अपमानित ही हो जाए,

पैदा होकर क्या गुनाह किया,

उसका दर्द भी दिलों से फ़नाह हो जाए।


अपराधी अपराध करके भी,

सिर ऊँचा करके बस हमेशा चलता जाए,

और वो अपराधी न हो कर भी,

सूली पर बेवजह ही यों चढ़ती जाए।


हे भगवान ! अब आप ही न्याय करो,

ये दर्द अब और सहा न जाए,

इस कलयुग में कुछ तो उपकार करो,

बस ये अन्याय अब खत्म हो जाए।


सुना है तेरे घर में देर है, अन्धेर नहीं,

बस यहीं बात कुकर्मियों को समझ आ जाए,

आसमान पे जा बैठे अपराध करके भी,

सिर से पैर काँपे, अपनी कोख को न लज्जित कर पाए।


क्या कहें पैदा होती बच्ची को,

वो पैदा न हो या फिर कोख में ही मर जाए,

खत्म पैदाइश जब उसकी हो,

तब दुनिया का ही चक्र कैसे चल पाए।


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