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Madhuri Jaiswal

Others

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Madhuri Jaiswal

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अवसाद

अवसाद

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जब दर्द बर्दाश्त से बाहर हो जाये, 

इंसान सहते सहते टूट जाये l


मन के सारे हौसले मर जाये, 

जीवन में हर तरफ 

बस निराशा ही निराशा नज़र आये l


अपने ज़िन्दगी से इंसान जब तंग आ जाये, 

अपने हालातों से परेशान हो जाये,

बहुत मेहनत के बाद भी इंसान जब नाकाम हो जाये l


सारी कठिन परिस्थितियाँ मिलकर

एक साथ कहर बरसाने लगे, 

आँखों के सामने केवल जटिलताएं ही नज़र आने लगे l

जब लोगों की बातें दिल को बहुत चोट पहुँचाने लगे l


दिल में कोई जोश कोई उमंग ना रहे, 

बस अकेले में बहुत रोने से बहुत सुकून मिले l


जब इंसान जीवन की परीक्षाएं देते देते थक जाये, 

फिर भी कोई अच्छा निर्णय सामने ना आये l


ऐसे ही धीरे धीरे इंसान को, 

अंदर ही अंदर बर्बाद कर देती है, 

ये अवसाद इंसान की सारी इन्द्रियों को अपने वश में कर लेती है l


मन ही मन पूरी तरह से, जब कोई शख्स हार जाता है, 

अपने गमों को खुलकर 

किसी से भी बता ना पाता है l


अंदर ही अंदर घुट घुट के जीता मरता है 

सब ठीक है मुझे अकेला छोड़ दो, 

बस यही सभी से कहता है l


उस वक़्त वह शख्स

भयंकर रूप से इस अवसाद के चपेट में रहता है l


तब डिप्रेसड शख्स को एक हमदर्द की ज़रूरत होती है l

बिन बताये ही सबकुछ जान जाये, 

ऐसे किसी शख्स की ज़रूरत होती है l


जब उसके दर्द को सहने की सीमा हद पार कर जाये, 

उस वक़्त कोई आकर उसे गले से लगाए l


सारे उलझनों को मिटाये 

उसे खुश रखने को लाख तरकीब आज़माये l


जब तक मानसिक पीड़ा सहे 

कोई संग उसके हरदम रहे l


दवा से ज्यादा किसी के मजबूत साथ की जरूरत होती है, 

डिप्रेशन के शिकार हर शख्स को 

प्यार और ख्याल की ज़रूरत होती है l


दुख भरी तन्हाइयों की नहीं, 

खुशनुमा महफिल की ज़रूरत होती है, 

कोई एक शख्स भी गर मिल जायेगा 


जो मानसिक तनाव से पीड़ित शख्स में खुलकर जीने की नई उम्मीद जगायेगा 

परिस्थितियों से लड़ने के लिए, 


एकदम मजबूत बनाये 

हर पल साथ निभाएगा 

तब जाकर कहीं, 


इस डिप्रेशन जैसे काली मनहूस अंधेरों से पीड़ित शख्स , 


खुद को फिर से पहले जैसा कर पायेगा 

और नई आशाओं के साथ हर समस्या से लड़ने को तैयार हो पायेगा...



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