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Pradeep Sahare

Tragedy Crime

4  

Pradeep Sahare

Tragedy Crime

चीख

चीख

2 mins
396


प्रेम,सहमति,समर्पण,

आलिंगन, रेतस (स्पर्म)।

इन पंचम क्रियाओं से,

निर्मित मैं एक जान ।

बढ़ रही कोख में

माँ के रक्त से मिलती ऊर्जा ।

दौड़ती भागती, इधर उधर

मंद मंद मुस्कराती,

सोने पर देखती सपने ।

सोचती, बाहर आकर,

ना जाने कितने होगे अपने ।

एक दिन बैठी थी छुपकर

ना जाने कैसे पडी ,

कॅमेरे की नज़र

मैं मुस्कराई

शायद मेरी मुस्कराहट,

पसंद ना आयी

बढने लगा घर में शोर

कसमें,वादाे की देकर दुहाई।

माँ बहुत समझायी

फिर भी ना थमा शोर

माँ हो गई कमजाेर ।

कमजाेरी फायदा लेकर,

लेकर आये अस्पताल ।

माँ की धीमी थी चाल,

बिखरे हुए थे बाल

मैं भी कुछ,

अनजाने ड़र से ड़री

माँ बेड़ पर पडी,

फिर एक बार लडी

सब कुछ हुवा व्यर्थ

जीत गया स्वार्थ ।

बढने लगे मेरी ओर,

एक एक कर ,

चिमटा, चाकू छूरी

झलक रहीं थी,

माँ और मेरी मजबूरी

माँ रो रही थी,

मैं भाग रही थी ।

कोशिश कर रही थी,

एक बार छुपने की

क्योंकि..

अब यह जगह ,

नहीं थी अपनों की ।

भागकर थकी तो,

पैर पकड़ा चिमटे ने,

काट दिया कैंची ने ।

मैं चिखी चिल्लाई

ड़रा रही थी,

 नन्हे हाथों से

धारदार अवजारों को

नहीं फर्क पड़ रहा था,

उन जंगली इनसानों को 

मेरे एक एक अंग,

काट रहें थे बेदर्दी से ।

हो रहें थे परिवर्तित,

एक एक मास के गोले में ।

रक्त बह रहा था,

मेरा और माँ का ।

एक अंतिम कोशिश,

बचने की,

सीर को जगह थी,

छुपने की ।

क्योंकि...

वह नही रहा मान ।

इतना भी,

बेदर्दी नहीं हैं इनसान ।

फिर बेदर्दी से हथौड़ा ,

सिर पर पड़ा ।

भागते हुए सिर को फोडा ।

छा गया अंधेरा,

कुछ न रहा था दीख

बस निकली ,

एक अंतिम चीख

एक अंतिम चीख

मांगता हूं,

कविता के माध्यम से भीख

अंत ना करो बेदर्दी से

आने दो इस जग में

छाने दो इस जग में ।


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