फागुन आया रे
फागुन आया रे
फागुन की इस मौसम में
तू जो मेरी पास नहीं है
तुम्हें याद करके
मन ही मन उदास हो जाती हूं
कहीं पे लगती नहीं मेरी मन
ये धरती, ये नदियां
ओर ये चांदनी रात
सब मुझको चूवती है
मेरी अकेलीपन पर
मुझपे हंसती है
लेकिन जबसे पेड़ से
नीचे गिरती हुई पत्ते ने
तुम्हारी आने का संदेश दी
तो मेरे मन नाचने लगा
पलाश ,गुलमोहर और
केतकी तुम्हारे स्वागत केलिए
आंगन में मेरी तैयार खड़ी है
सखा कब आयेंगे तुम ?
जल्दी से आ जाओ
हम दोनों मिलके चांदनी रात में
ढेर सारे बातें करेंगे
अपने आपमें खो जाएंगे.....