मिलन की आशा
मिलन की आशा
मुझे याद है कि तुमने
विगत वर्ष मेरे घर आकर
मुझे स्वदेश जाने हेतु
विदा किया था और
इस वर्ष भी सबके सामने ही
गले लगा कर
विदा करने का
साहस भी किया था।
याद आते ही तुम्हारी
आंखें छल- छला सी गई हैं
अपनी बेबसी और बेचैनी को
आशंकाओं के जंगलों में
फंसा हुआ सोच कर ही
पुनः मिलने की संभावनाओं से
निरुत्तर सा हो गया हूं
क्या कहूं कब संयोग होगा
और कब मिलन होगा
यह सब अनिश्चित है
लेकिन वियोग में ही सही
तुम्हारी वाणी का सुख
मिलेगा ही यह मानकर
मैं चला हूं और फिर
मिलने की कोई युक्ति
परमेश्वर से मांग बैठा हूं।

