मां
मां
चन्दन से भी बढ़कर होती
मां चरणों की रज ।
ईश्वर की प्रति मूर्ति अरे मां
आप रहे क्यों तज ।।
मां चरणों की सेवा जग में
जाती नहीं निरर्थक ।
वक्त पड़े आशीष मिला जो
वो होता है सार्थक ।।
नौ महीने तक उदर में रखकर
जिसने तुमको पाला ।
शिक्षा और संस्कार का तुमको
नित ही दिया निवाला ।।
पग चलना जब सीखा तुमने
पीछे दौड़ रही थी ।
मल व मूत्र को देख तुम्हारे
मुख ना मोड़ रही थी।।
लगती चोट कहीं गर तुमको
फूंक मारकर हरती ।
जब। भी रोते देखे तुमको
उसकी आंख है भरती ।।
सब रिश्ते में स्वार्थ जुड़ा है
मां में झोल नहीं है ।
मां के चेहरे पर कोई भी
दूजा खोल नहीं है।।