माँ तो माँ है...
माँ तो माँ है...
माँ तो माँ होती है, माँ का है क्या कहना,
वो तो इस धरा की है सबसे सुन्दर गहना।।
उसके आँचल में है,सिमटा त्रिलोक की छाया,
जगातनियंता भी तो है उसके आगे भरमाया।
उसने ही पत्थर में भी प्राणो का सृजन किया है,
इसकी खातिर उसको ही पड़ता पीड़ा है सहना।।
वो ममता की मुरत और है गंगा सी पावन,
धैर्य धरा से भारी और फूलों सी मनभावन।
छण में ज्वाला हों भड़के, छण में नीर है शीतल,
उसकी छाया में हम क्या देव भी चाहें रहना।।
उसकी सूरत को देखें तो मन प्रसन्न हों जाएं,
मृदवाणी से उसके हम अमृत सा सूख पाएं।
संतानो के लिए ही उसने कुचले अपने सपनें,
उसकी आँखे सदा चमकती देख के हमें सवं उपरना।।
दुःख कितने ही झेले पर उफ्फ ना देखें हमनें,
अब हम मिलकर लगें है उसके सपनें को निगलने।
कितनी दुनिया बदल भी जाएं माँ तो अभी भी माँ है,
"जीते "करें नमन माता को चाहें पूजा चरणों की करना।।
*****************************************
