बिना रिश्तों वाला प्यार
बिना रिश्तों वाला प्यार
धूप अब पत्तों के नीचे छनकर आने लगी है,
मकड़ियों के धूसर जाले भी अच्छे लगने लगे हैं।
बुलबुल पेड़ों पर ही नहीं,घर के अंदर भी गाने लगी है
जुगनूओं को भी बया के घोसले अब अपने लगने लगे हैं।
हाथों से उठकर प्यार अब आंखों में समाने लगा है,
बिना रिश्तों वाला प्यार अब ज्यादा सुहाना लगने लगा है।