अव्यक्त प्रीत
अव्यक्त प्रीत
स्नेह- प्रीत की पीर पिया, शब्दों से है अव्यक्त पिया,
अदृश्य से संबंधों में तुम संग, तुम सी हो गई पिया।
नेह से लगकर, देह छूट गई, कान्हा कान्हा करत जिया,
अखियों से अविरल झलकत है प्रीत की रसधार पिया।
प्रीत की गागर परिपूर्ण लगत है, पर है ये इक भ्रम पिया,
निस दिन सुमिरत मन नही भरही, अश्रु रूकहई नाही पिया।
वृंदावन सब सुनो भयो, एकौ मन काहू न लगत,
मैं राधा थी, कृष्ण बन गई, हरी अबहू मन माही बसत।
जग है सुंदर, सुंदरतम है प्रितौ राधौ कृष्णन की,
छबि ऐसी जग माहि बसत गई, छूटत अभौ कबहूं नाही की।

