वागड़- पोथी....!
वागड़- पोथी....!
वागड़ की न्यारी हरियाली, माही का अमृत सा पानी,
दक्षिण राजस्थान में कर्क पर फैली, सूरज की किरणें उजयारी।
चावल, कपास, दालें, मक्का पैदा होती भरपूर यहां,
माही बांध के नीर से सिंचित, काली कमाल मिट्टी यहां।
'सौ टापूओं का द्वीप' से अलंकृत,' लोड़ी काशी' उपनाम है,
शिव की महिमा गान की भूमि, बेडेश्वर प्रसिद्ध धाम है।
काली बाई सी देशभक्त, इसी धरा पर बेटी है,,
मातृभूमि की रक्षा हेतु, अंग्रेजी से डटकर लड़ी है।
मेले, त्योहारों की धूम, वागड़ की एक पहचान है,
पशु, बांस, मिट्टी, खेती से जुड़े, यहां मूल व्यवसाय है।
बांस, बांसिया भील की भूमि, बांसवाड़ा है महादेव की भूमि,
अतरंगी है लोक -गीत संस्कृति, वागड़ी यह भाषा
की भूमि।
कुछ छोटे, कुछ ऊंचे से डुंगर, डूंगर से नाम पड़ा डूंगरपुर,
महिला शिक्षा और संख्या में अग्रगण्य है, डूंगरपुर।
उदयराज की मातृभूमि, 'पूर्व का वेनिस ' उपनाम है,
हरयाली से अटा उदयपुर, सैलानियों का धाम है।
राजस्थान की मरुभूमि में, वागड़ एक कश्मीर है,
मां त्रिपुरा की यह धरा, वर्षा से परिपूर्ण है ।
डूंगरपुर, उदयपुर, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा वागड़ के उपभाग है,
मातृभूमि है यह हमारी, इससे हमे अनुराग है।
आओ वागड़ का यशगान करें, शत शत कोटि प्रणाम करें,
है अमूल्य धरोहर मरुभूमि की यह, मिलकर सार -संभाल करें।
(वागड़ :- स्थान विशेष का उपनाम, "बाँसवाड़ा" जिला)