ख्वाईश
ख्वाईश
ख्वाहिश है आज भी उन्हें पाने की
मशक्कत जारी है हाथ मिलाने की
है तू अनजान , हाल मेरा तुझसे ही मिलता है
अब कोशिश न कर मुझे बचाने की
यू मारा मारा फिर रहा एक रोटी के लिए
काम काज रहा हु उसे कमाने की
वो दुल्हन बन मेरे सामने रूकसत हुई
खुदा ने ये कैसी आजमाइश की मिलाने की
छोड़कर आना सारे रियासत, रिवायत तुम
मुझे फिक्र नहीं इस जालिम ज़माने की।