तेरे इश्क मे
तेरे इश्क मे
चांद को देखकर मै शरमाने लगी
क्योंकि उसमें तेरे अक्स को निहारने लगी
सारी रात यूं ही गुजर दूंगी, तेरे इश्क में
सारे जहां से बधंन छुड़ाने लगी
धीरे-धीरे रात गहरी होने लगेगी
और तेरे इश्क का रंग भी गहरा होता जायेगा
तेरी बाहों की आगोश में , सारे जहां को भुलाने लगी
चाहे कुछ भी हो अंजाम इस इश्क का
पर मै तो राधा की तरह बाबरी बन जाने लगी
न किसी की फ्रिक, न किसी का डर
इश्क जब से हुआ है तब से निडर में हो जाने लगी
अब तो लगता है कि तू पास ही रहे
क्योंकि तन्हाई मुझे सर्प की तरह डस जाने लगी
जैसे-जैसे रात सुबह में बदलने लगी
तेरे इश्क का रंग भी और मुझ पर चढ़ता गया
सूरज की पहली किरण के साथ
मै भी और लाल हो जाने लगी
सोचा न था यह हाल होगा इश्क में
कि मै भी मीरा कहलाने लगी
तेरे इश्क में , मै और भी दीवानी बन जाने लगी॥