होलिका पुकार
होलिका पुकार
होलिका दहन अब बंद करो
कहती हैं यह होलिका
नारी का सम्मान करो
आखिर थी मैं भी एक नारी
माना गलती की मैंने एक बार
पर सजा मिल रही है अब तक
युगों युगों से जलती आ रही
हर साल जलाई जाती हूँ
क्या इतना बडा किया था पाप
जो अब तक नही हो पाया इन्साफ
अगर जलाना ही है तो उनको जलाओ
जो करते है इस युग में पाप
वह बने फिरते तो ज्ञानी और महापुरुष
पर है वह अज्ञान और दुष्टपुरुष
अगर जलाना ही है तो मन के
अज्ञान को जलाओ
और बेटियों को कोख मे
मरने से बचाओ
हां, किया था यह पाप मैनें
अपने भाई के कहने पर
क्योंकि उससे करती थी अति प्रेम
पर आज के जमाने में तो बहनें ही
बहुत सी ले लेती अपने भईयों की जान
पर मैने भाई की आन की खातिर
दी थी अपनी जान
और फिर भी मैने किया है पाप
तो मुझे तो सजा भी मिली थी हाल
तो क्यूं अब तक करते हो मेरा दहन
करना है अगर दहन तो करो
समाज मे भरी व्यापक बुराईयों का
अगर आग लगानी है
तो लगाओं बलात्कारियों को
जो करते है नारी का चिरण-हरण
पर अब बन्द करो मेरा दहन
कहती है होलिका तुमसे सज्जन॥
