श्रीमद्भागवत-१६२; मनु आदि के पृथक पृथक कर्मों का निरूपण
श्रीमद्भागवत-१६२; मनु आदि के पृथक पृथक कर्मों का निरूपण
राजा परीक्षित ने पूछा, भगवन
किसके द्वारा नियुक्त हैं होते
मनु, मनुपुत्र, सप्तऋषि आदि
जो आपने वर्णन किये हैं ये!
अपने अपने मन्वन्तर में ये
काम करते हैं कौन कौन सा
और किस किस प्रकार किया करते
बतलाइये आप हमपर कर कृपा!
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
जो मनु, मनुपुत्र, सप्तऋषि, देवगण ये
परम परमेश्वर भगवान् ही
इनकी नियुक्ति हैं करने वाले!
भगवान् यज्ञपुरुष आदि अवतार जो
उनकी प्रेरणा से मनु आदि
सारे विश्व की व्यवस्था का
संचालन करते हैं ये सभी!
श्रुतियाँ नष्टप्राय हो जातीं जब
चतुर्युगी के अंत में
तब पुनः उनका साक्षात्कार करते हैं
सप्तऋषि अपनी तपस्या से!
उन श्रुतियों से ही होती
रक्षा है सनातन धर्म की
पृथ्वी पर परिपूर्ण धर्म का
अनुष्ठान करवाते मनु यही!
मनुपुत्र मन्वन्तर भर
विभाग कर काल और देश दोनों का
कार्य करते रहते हैं वो
प्रजापालन और धर्मपालक का!
जिन ऋषि, पितृ, भूत और मनुष्य का
सम्बन्ध है पंचमहायज्ञ आदि कर्मों से
उनके साथ देवता उस मन्वन्तर में
यज्ञ का भाग स्वीकार हैं करते!
भगवान की दी हुई त्रिलोकी की
अतुल सम्पति का उपभोग कर
प्रजा का पालन भी करें
ये सब करते हैं इंद्र!
यथेष्ट वर्षा करने का
अधिकार भी उन्ही को संसार में
भगवान् भी अनेकों रूप धर
ज्ञान, सृष्टि का विस्तार हैं करते!
युग युग में सनकादि सिद्धों का
रूप धारण कर ज्ञान का
कर्म का विस्तार करने को रूप धरें
याज्ञवल्कय आदि ऋषिओं का!
दत्तात्रेय और योगेश्वरों के रूप में
योग का उपदेश हैं करते
सृष्टि का विस्तार करते वे
मरीचि आदि प्रजापतिओं के रूप में!
सम्राट के रूप में लुटेरों का वध करें
और धारण कर शीत, उष्ण गुणों को
सबको संहार की और ले जाते
काल रूप को धारण करके वो!
नाम और रूप की माया से
प्राणियों की बुद्धि विमूढ़ हो रही
हरि की महिमा गाने पर भी
वास्तविक स्वरुप को जानते नहीं!
परीक्षित, महाकल्प और अवांतर कलप का
परिमाण सुना दिया मैंने तुम्हे
चौदह मन्वन्तर बतलाये हैं
प्रत्येक अवान्तर कलप में विद्वानों ने!